फार्मेसी अधिनियम 1948 के तहत डी-फार्मा और बी-फार्मा कोर्स में प्रवेश को लेकर राज्य के कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा नियमों के विपरीत प्रवेश दिए जाने पर स्टेट फार्मेसी काउंसिल उत्तराखंड ने कड़ा रुख दिखाया है। काउंसिल ने सभी संस्थानों को पत्र जारी कर साफ कर दिया है कि फार्मेसी शिक्षा से जुड़े नियमों का पालन न करने पर संस्थान स्वयं जिम्मेदार होंगे।
नियमों के विरुद्ध प्रवेश दे रहे हैं कई संस्थान
रजिस्ट्रार, फार्मेसी काउंसिल उत्तराखंड के.एस. फर्स्वाण ने बताया कि राज्य के कई कॉलेज अनिवार्य पात्रता न रखने वाले विद्यार्थियों को डी-फार्मा और बी-फार्मा में प्रवेश दे रहे हैं, जो सीधे-सीधे फार्मेसी एक्ट का उल्लंघन है।
फार्मेसी शिक्षा नियमन 1992, 1994 और 2014 के अनुसार, डी-फार्मा/बी-फार्मा में प्रवेश हेतु इंटरमीडिएट (साइंस स्ट्रीम) में अंग्रेजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी और गणित विषयों में अलग-अलग पास होना अनिवार्य है।
लेकिन कुछ संस्थानों द्वारा इन मानकों को नज़रअंदाज़ करते हुए विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जा रहा है।
पंजीकरण में आती है दिक्कत, खराब हो रहा छात्रों का भविष्य
रजिस्ट्रार फर्स्वाण ने बताया कि जब ऐसे छात्र डिप्लोमा या डिग्री पूरी करने के बाद पंजीकरण कराने आते हैं, तो अनिवार्य विषयों में उत्तीर्ण न होने के कारण उनका फार्मासिस्ट पंजीकरण नहीं हो पाता।
इससे
- छात्रों का भविष्य संकट में पड़ जाता है,
- उनके द्वारा खर्च की गई फीस और वर्षों की मेहनत व्यर्थ हो जाती है,
- कई मामलों में छात्रों को हाईकोर्ट, नैनीताल तक गुहार लगानी पड़ रही है।
काउंसिल की सख्त चेतावनी
फार्मेसी काउंसिल ने सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को चेताया है।
- प्रवेश से पहले सभी दस्तावेजों की संपूर्ण जांच करें,
- सुनिश्चित करें कि छात्र अनिवार्य विषयों में अलग-अलग उत्तीर्ण हों,
- भविष्य में गलत प्रवेश देने पर कॉलेज स्वयं जिम्मेदार होंगे।
काउंसिल ने यह भी कहा है कि यदि संस्थान नियमों का उल्लंघन करते पाए गए, तो उनके खिलाफ नियमानुसार कठोर कार्यवाही की जाएगी।
