सचिव खनन के निर्देशन में औद्योगिक विकास विभाग की ओर से गठित भूवैज्ञानिक दल ने धराली-हर्षिल आपदा प्रभावित क्षेत्र का भूगर्भीय निरीक्षण किया। निरीक्षण में पाया गया कि हर्षिल नगर के समीप तेलगाड़ नामक स्थानीय धारा, तीव्र वर्षा के कारण सक्रिय होकर भारी मात्रा में मलबा एवं पानी लेकर भागीरथी नदी में जा मिली, जिससे एक विशाल जलोढ़ पंख बन गया। इस पंख ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को रोककर दाहिने किनारे पर लगभग 1,500 मीटर लंबी और 12–15 फीट गहरी अस्थायी झील का निर्माण कर दिया।
झील के जलभराव से राष्ट्रीय राजमार्ग का एक हिस्सा, हेलीपैड और हर्षिल नगर के भू-क्षरण को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। भूवैज्ञानिक दल के अनुसार, झील की उच्च नमी सामग्री और अस्थिर अवसाद संरचना के कारण भारी मशीनरी का उपयोग संभव नहीं था, जबकि मैनुअल श्रम भी सीमित था।
इन परिस्थितियों को देखते हुए, भूवैज्ञानिकों ने एक आपातकालीन वैज्ञानिक मलबा निकासी एवं चैनलाइजेशन योजना बनाई, जिसके तहत झील से धीरे-धीरे पानी छोड़ने के लिए 9–12 इंच गहरे छोटे विचलन चैनल तीन से चार चरणों में बनाए गए। इस कार्य को राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल और सिंचाई विभाग उत्तरकाशी ने मिलकर अंजाम दिया।
पहले दिन, तीन लक्षित चैनलों का निर्माण कर पानी का प्रवाह नियंत्रित रूप से शुरू किया गया। दूसरे दिन भी इसी प्रक्रिया को दोहराया गया। जिलाधिकारी उत्तरकाशी और भूवैज्ञानिक दल द्वारा किए गए निरीक्षण में योजना को सफल पाया गया, जिससे झील का जलस्तर नियंत्रित हुआ और निचले क्षेत्रों में जमा मलबा नदी के प्रवाह से स्वतः साफ हो गया।
इस सफल ऑपरेशन में भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय, उत्तराखण्ड के संयुक्त निदेशक जी.डी. प्रसाद, रवि नेगी, सहायक भूवैज्ञानिक प्रदीप कुमार और स्वप्निल मुयाल, पुलिस क्षेत्राधिकारी, एसडीआरएफ दल और सिंचाई विभाग के अधिकारी-कर्मचारी शामिल रहे।
यह ऑपरेशन न केवल तत्काल खतरे को टालने में सफल रहा, बल्कि हर्षिल क्षेत्र में आपदा प्रबंधन के लिए एक प्रभावी उदाहरण भी स्थापित किया।
