सिद्धपीठ देवराड़ा गुरुवार को ढोल-नगाड़ों, भंकरों और शंख-ध्वनि के बीच मां नंदा राजराजेश्वरी के जयकारों से गूंज उठा। पौष मास शुक्ल पक्ष की पंचमी के अवसर पर छह माह के प्रवास के बाद मां नंदा की डोली अपने ननिहाल सिद्धपीठ देवराड़ा से मायके कुरूड़ के लिए विदा हुई। भक्तों के कंधों पर सवार देवी की डोली के दर्शन को सुबह से ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।
निर्धारित समय पर सुबह दस बजे गर्भगृह के कपाट खोले गए। विधि-विधान और परंपरा के अनुसार मूर्ति स्नान एवं विशेष पूजा-अर्चना के बाद मां नंदा की मूर्ति को डोली में विराजमान किया गया। इसके पश्चात ढोल-नगाड़ों, भंकरों और शंख-घंटी की ध्वनि के साथ देवी के पारंपरिक झोड़े लगाए गए। इस दौरान मां नंदा के साथ लाटू देवता, भूम्याल देवता और भैरव देवता के पश्वा अवतरित हुए और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिया।
कुरूड़ के गौड़ पुजारियों ने देवी के आवाहन गीत गाए गए, जिनकी गूंज पर श्रद्धालु भाव-विभोर होकर नृत्य करने लगे। क्षेत्र के बीस गांवों की महिला मंगल दलों ने भी देवी के झोड़े और चांचरी गाकर वातावरण को भक्तिमय बना दिया। स्थानीय पुजारियों एवं ब्राह्मणों ने सामूहिक रूप से देवी पूजन संपन्न कराया। पारेश्वर प्रसाद देवराड़ी, मोहन प्रसाद देवराड़ी और मालदत्त मिश्रा ने ग्रामीणों की ओर से देवी का पाठ किया।
पूजन के उपरांत मां नंदा की डोली भक्तों के कंधों पर सवार होकर दोपहर को सुनाऊं पहुंची, जहां श्रद्धालुओं ने फूलों की वर्षा कर देवी का भव्य स्वागत किया। पूजा-अर्चना और भेंट अर्पित करने के बाद डोली अपने पहले पड़ाव बज्वाड़ गांव के लिए प्रस्थान कर गई। नंदा देवी की डोली 20 पड़ावों से होते हुए उत्तरायण पक्ष में सिद्धपीठ कुरूड़ पहुंचेगी, जहां से छह माह बाद राजजात यात्रा की अगुवाई करेगी।
