ऐतिहासिक बग्वाल मेले में आस्था, परंपरा और उत्साह का अद्भुत संगम देखने को मिला। पाटी ब्लॉक स्थित मां वाराही धाम में सुबह प्रधान पुजारी द्वारा विधिवत पूजा-अर्चना के साथ बग्वाल की शुरुआत हुई, जिसके बाद चारों खाम — वालिक (सफेद), चम्याल (गुलाबी), गहड़वाल (भगवा) और लमगड़िया (पीला)— के बग्वालियों का पारंपरिक अंदाज़ में प्रवेश हुआ।
रंग-बिरंगे वस्त्रों और पगड़ियों में सजे योद्धाओं के हाथों में बांस और रिंगाल से बनी ढालें थीं, जिनसे वे एक-दूसरे के प्रहारों से बचते रहे। जैसे ही योद्धा मैदान में पहुंचे, शंखनाद गूंज उठा और मां वाराही के जयकारों के बीच बग्वाल का आगाज़ हुआ। इस दौरान आसमान में फलों और फूलों की बरसात ने दृश्य को अलौकिक बना दिया, जबकि श्रद्धालुओं की उत्साहभरी आवाज़ों से पूरा वातावरण गूंज उठा।
इस वर्ष बग्वाल दोपहर 1:58 बजे शुरू होकर 2:05 बजे समाप्त हुई। सात मिनट चले इस अनूठे युद्ध में पत्थरों के स्थान पर फल और फूलों का प्रयोग कर सदियों पुरानी परंपरा को जीवंत रखा गया।
पीठाचार्य पंडित कीर्ति बल्लभ जोशी के अनुसार, फल-फूलों से खेली जाने वाली बग्वाल अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है।